Thursday 30 June 2016

‎मोहिनीअवतार‬

भगवान विष्णु का ‪#
समुद्र मंथन के दौरान सबसे अंत में धन्वन्तरि अमृत कलश लेकर निकले। अमृत पाने की लालसा में देवताओं औऱ दैत्यो के बीच युद्ध होने लगा। इसी बीच इंद्र का पुत्र जयंत अमृत कलश लेकर भाग गया। सारे दैत्य व देवता भी उसके पीछे भागे। इस दौरान अमृत कुंभ में से कुछ बूंदें पृथ्वी पर भी गिर गई। जिन चार स्थानों पर अमृत की बूंदे गिरी वहां प्रत्येक 12 वर्ष बाद कुंभ का मेला लगता है।
इधर देवता परेशान होकर भगवान विष्णु के पास गए। शिव की दिव्य प्रेरणा की मदद से भगवान विष्णु ने मोहिनी अवतार लिया और मोहिनी रूप में उन सबको मोहित किया। उस रूपवती स्त्री को देखकर दैत्य मोहित हो गए ओर बोले-सुमुखी! तुम हमारी भार्या हो जाओ और यह अमृत लेकर हमें पिलाओ। बहुत अच्छा कहकर भगवान् ने उनके हाथ से अमृत ले लिया। मोहिनी ने देवता व असुर की बात सुनी और कहा कि यह अमृत कलश मुझे दे दीजिए तो मैं बारी-बारी से देवता व असुर को अमृत का पान करा दूंगी। दोनों मान गए। देवता एक तरफ तथा असुर दूसरी तरफ बैठ गए।
फिर मोहिनी रूप धरे भगवान विष्णु ने मधुर गान गाते हुए तथा नृत्य करते हुए देवता व असुरों को अमृत पान कराना प्रारंभ किया। वास्तविकता में मोहिनी अमृत पान तो सिर्फ देवताओं को ही करा रही थी जबकि असुर समझ रहे थे कि वे भी अमृत पी रहे हैं। तभी राहू चंद्रमा का रूप धारण करके अमृत पीने लगा। तब सूर्य और चंद्रमा ने उसके कपट-वेश को प्रकट कर दिया। यह देख भगवान श्रीहरि ने चक्र से उसका मस्तक काट डाला। उसका सर अलग हो गया और भुजाओं सहित धड़ अलग रह गया। फिर भगवान को दया आ गयी और उन्होंने राहु को अमर बना दिया। तब ग्रहस्वरूप राहू ने भगवान श्रीहरि से कहा इन सूर्य और चंद्रमा को मेरे द्वारा अनेकों बार ग्रहण लगेगा। उस समय संसार के लोग जो कुछ दान करें, वह सब अक्षय हो। भगवान विष्णु ने तथास्तु कहकर सम्पूर्ण देवताओं के साथ राहू की बात का अनुमोदन किया। इसके बाद भगवान ने मोहिनी रुप त्याग दिया।

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