Saturday 25 June 2016

प्रश्न : आध्यात्मिक जीवन की खोज में धन की क्या जगह होनी चाहिए?


श्री श्री रवि शंकर : समस्या तब होती है जब तुम पैसे जेब में ही नहीं बल्कि दिमाग में भी ले के घूमते हो।वैसे भी रात-दिन इसके बारे में सोच-सोच के क्या फायदा जब जेब खाली हो?
पैसा एक साधन है जीवन को चलाने का, जीवन का लक्ष्य नहीं।विश्वास रखो कि तुम्हें जब भी जितने पैसों कि ज़रुरत होगी, मिल जायेंगे।इस आस्था के साथ प्रयत्न करो और आगे बढ़ो।
इसके आलावा जो भी तुम कमाते हो उसका २-३% समाज के लिए खर्च करो। हम इसे धन-शुद्धि कहते हैं।
संस्कृत में एक शब्द है अन्न शुद्धि।
इसमें चावल में घी डालने को कहा गया है।अगर तुम बिना कुछ डाले चावल खाओ तो वो तुम्हारे शरीर के लिए इतना अच्छा नहीं है क्योंकि इससे तुम्हारे शारीर में शक्कर का प्रमाण एकदम से बढ़ जाता है।
तो इस में ज़रा-सा घी डालने से शक्कर को स्टार्च में बदलने कि प्रक्रिया धीमी हो जाती है| इस तरह पाचन क्रिया धीमी पड़ने से तुम्हें डायबिटीस होने का खतरा कम रहता है। इसलिए हम कहते हैं घी डालने से चावल शुद्ध हो जाता है।
इसी तरह ज़रुरत-मंदों को देने से धन शुद्ध हो जाता है। 'आर्ट ऑफ़ लिविंग' गाँव के स्कूलों में सेवा-कार्य कर रही है।
'डॉलर अ डे' कार्यक्रम में हम बच्चों को भोजन, कपड़े और शिक्षा दिलाते हैं।
हमारे पास इस तरह के ज़रुरत-मंदों के लिए ऐसे १०० स्कूल हैं।ये बच्चे को ज़बरदस्ती के बाल-श्रम से छुटकारा दिलाता है।इससे उनके सर से बोझ उतर जाता है ।ये बच्चे क्षेत्र में पढ़नेवाली पहली पीढ़ी बनते हैं और ये बदलाव बहुत प्रभावशाली है।
ये ऐसा है जैसे किसी को मछली देने के बजाए उसे मछली पकड़ना सिखाना ज्यादा लाभदायक है। साथ ही अगर महिलाओं को ऐसे सशक्त बनाने वाले कार्यक्रम में भरती किया जाये तो बहुत अद्भुत रहेगा।यही ज़रूरी है - शिक्षा जो तकनिकी , वैज्ञानिक और साथ ही आध्यात्मिक हो।

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