जिसका समय भगवान श्री कृष्ण के गुणों के गान अथवा श्रवण में व्यतीत हो रहा है उसके अतिरिक्त सभी मनुष्यों की आयु व्यर्थ जा रही है ये भगवान सूर्य प्रतिदिन अपने उदय और अस्त से उनकी आयु छिनते जा रहे है ।क्या वृक्ष नहीं जीते ? क्या लुहार की धौकनी साँस नहीं लेती ..? गाँव के अन्य पालतू पशु क्या मनुष्य- पशु की तरह खाते पीते या मैथुन नहीं करते..?
जिसके कान में भगवान श्री कृष्ण की लीला कथा कभी नहीं पड़ी वह नर पशु ,कुते,ग्राम सुकर ऊँट और गधे से भी गया बिता है। जो मनुष्य भगवान् की कथा कभी नहीं सुनता उसके कान बिल के समान है । जो जीभ भगवान् की लीलाओं का गायन नहीं करती,वह मेढ़क की जीभ के समान टर्र टर्र करने वाली है उसका तो ना रहना ही अच्छा है जो सिर कभी भगवान् श्री कृष्ण के चरणों में झुकता नहीं,वह रेशमी वस्त्र से सुसज्जित और मुकुट से युक्त होने पर भी बोझा मात्र ही है जो हाथ भगवान् की सेवा पूजा नहीं करते वे सोने के कंगन से भूषित होने पर भी मुर्दे के हाथ है ।जो आँखे भगवान की याद दिलाने वाली मूर्ति, तीर्थ,नदी आदि का दर्शन नहीं करती ,वे मोरो की पाँख में बने हुए आँखों के चिन्ह् के समान निरर्थक है ।मनुष्यो के वे पैर चलने की शक्ति रखने पर भी न चलने वाले पेड़ो जैसे ही है ,जो भगवान की लीला स्थलियों की यात्रा नहीं करते ।जिस मनुष्यो ने भगवत्प्रेमि संतो के चरणों की धूल कभी सिर पर नहीं चढ़ायी,वह जीता हुआ भी मुर्दा है जिस मनुष्यने भगवान् के चरणों पर चढ़ि हुई तुलशी की सुगन्ध लेकर उसकी सराहना नहीं की ,वह श्वास लेता हुआ भी श्वास रहित शव है भगवान् की ऐसी रसमयी कथाओ का चस्का लग जाने पर भला कौन ऐसा है जो उनसे प्रेम न करे ..
जिसके कान में भगवान श्री कृष्ण की लीला कथा कभी नहीं पड़ी वह नर पशु ,कुते,ग्राम सुकर ऊँट और गधे से भी गया बिता है। जो मनुष्य भगवान् की कथा कभी नहीं सुनता उसके कान बिल के समान है । जो जीभ भगवान् की लीलाओं का गायन नहीं करती,वह मेढ़क की जीभ के समान टर्र टर्र करने वाली है उसका तो ना रहना ही अच्छा है जो सिर कभी भगवान् श्री कृष्ण के चरणों में झुकता नहीं,वह रेशमी वस्त्र से सुसज्जित और मुकुट से युक्त होने पर भी बोझा मात्र ही है जो हाथ भगवान् की सेवा पूजा नहीं करते वे सोने के कंगन से भूषित होने पर भी मुर्दे के हाथ है ।जो आँखे भगवान की याद दिलाने वाली मूर्ति, तीर्थ,नदी आदि का दर्शन नहीं करती ,वे मोरो की पाँख में बने हुए आँखों के चिन्ह् के समान निरर्थक है ।मनुष्यो के वे पैर चलने की शक्ति रखने पर भी न चलने वाले पेड़ो जैसे ही है ,जो भगवान की लीला स्थलियों की यात्रा नहीं करते ।जिस मनुष्यो ने भगवत्प्रेमि संतो के चरणों की धूल कभी सिर पर नहीं चढ़ायी,वह जीता हुआ भी मुर्दा है जिस मनुष्यने भगवान् के चरणों पर चढ़ि हुई तुलशी की सुगन्ध लेकर उसकी सराहना नहीं की ,वह श्वास लेता हुआ भी श्वास रहित शव है भगवान् की ऐसी रसमयी कथाओ का चस्का लग जाने पर भला कौन ऐसा है जो उनसे प्रेम न करे ..
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