Sunday 26 June 2016

मनु का इतिहास भाग एक)

 (हिंदू धर्मका इतिहास अति प्राचीन माना जाता है जिसे वेदकाल से भी पूर्व का बताया जाता है | वेदों की रचना का काल भी अलग-अलग माना जाता है | हिंदू धर्म में सर्व पूज्य ग्रन्थ, वेद कों ही माना जाता है जिसकी रचना किसी एक काल में नहीं हुयी है |
विद्वानों ने इसकी रचना का काल 4500 ई.पू. के समीप का माना है | सर्व प्रथम तीन वेदों कों तीन भागों में संकलित किया गया है जिसे वेदत्रयी कहा जाता है जिसमे ऋग्वेद, यजुर्वेद, और सामवेद का उल्लेख मिलता है | इसका विभाजन, राम के जन्म के पूर्व पुरूरुवा ऋषि के समय का बताया जाता है |
बाद में अथर्ववेद का संकलन अथर्वा ऋषि द्वारा किया गया जिस पर से इसका नामकरण भी हुआ है | वहीँ एक मान्यता यह भी है कि कृष्ण के समय में वेदब्यास ने वेदों का विभाजन किया था |
इस आधार पर लिखित रूप में आज से 6508 वर्ष पूर्व के पुराने, यें सारे वेद हैं | श्रीकृष्ण के आज से वर्ष पूर्व में होने के तथ्य अबतक प्राप्त हों गएँ हैं |
हिंदू और जैन धर्म की उत्पत्ति, पूर्व आर्यों की अवधारणा में है, जो 4500 ई.पू. मध्य एशिया में हिमालय के तलहटी में फैले हुए थे | फ़ारसी धर्म की स्थापना भी आर्यों की एक शाखा से ही हुयी है |
इसके बाद क्रमश: यहूदी धर्म 2000 ई.पू., बौद्ध धर्म 500 ई.पू., ईसाई धर्म सिर्फ 2000 वर्ष पूर्व और इस्लाम धर्म आज से लगभग 1400 वर्ष पूर्व का माना जाता है | धार्मिक साहित्य के अनुसार कुछ और भी धारणाएं हैं | यह भी माना जाता है कि 90 हजार वर्ष पूर्व इसका आरम्भ हुआ था |
रामायण, महाभारत और पुराणों में सूर्यवंशी और चंद्रवंशी राजाओं के वंश परम्परा का उल्लेख उपलब्ध है, इसके आलावा भी अनेक वंशों की परम्परा का वर्णन मिलता है | सभी कों क्रमबद्ध करना कठिन कार्य है क्यों कि पुराणों में इतिहास कों अलग-अलग तरह से व्यक्त किया गया है | जिससे सूत्रों में बिखराव या भ्रम मालूम पडता है लेकिन ज्ञाताओं के लिए यह कोई भ्रम की बात नहीं है |
पहले इतिहास को गाकर, रटकर अपने मुखाग्र पर जिन्दा बनाये हुए थे | जिसके कारण इतिहास काव्यमय और श्रृंगारिक होता गया जिसे आधुनिक लोग मानने से इंकार करते हैं | वह समय कागज और कलम का नहीं था अत: इस साक्ष्य को झुठलाना कहाँ तक वाजिब है जब कि पूर्णता का अधिक आभाव दिखता है | हिंदू धर्म ग्रंथ में मनुओं की परम्परा का उल्लेख मिलता है जिन्हें जैन धर्म ग्रंथ में कुलकर कहा गया है |
धरती के प्रथम मानव का नाम स्वयम्भू मनु तथा प्रथम स्त्री को शतरूपा माना जाता है जिसमे कुल चौदह मनु माने जाते हैं | इस समय धरती पर आठवें मनु वैवस्वत की ही संताने हैं | इसी काल में भगवान विष्णु का मत्स्यावतार भी हुआ था |
पुराणों में हिंदू इतिहास का आरम्भ सृष्टि उत्पत्ति से ही बताया जाता है यह कहना कि यहाँ से शुरुआत हुयी है उचित न होगा पर हिन्दी ग्रंथ महाभारत और पुराणों में प्रथम मनु से भगवान श्रीकृष्ण की पीढ़ी तक का उल्लेख मिलता है |
ब्रम्हा का कुल :- ब्रम्हा, विष्णु, और महेश इन त्रिदेवों में से एक देव ब्रम्हा हैं जिन्हें सृष्टि का रचयिता कहा जाता है | जिसका आशय सिर्फ जीवों की सृष्टि से है |
पुराणों के अनुसार ब्रम्हाके मानस पुत्रों में मन से मारीचि, नेत्र से अत्री, मुख से अंगीरस, कान से पुलत्स्य, नाभि से पुलह, हाथ से कृतु, त्वचा से भृगु, प्राण से वशिष्ट , अन्गुष्ट से दक्ष , छाया से कन्दर्भ, गोद से नारद, इच्छा से सनक, सनन्दन, सनातन, सनतकुमार, शरीर से स्वयम्भू मनु, ध्यान से चित्रगुप्त इत्यादि का जन्म हुआ था |
पुराणों में ब्रम्हा पुत्रों कों “ ब्रम्ह आत्मा वै जायते पुत्र”: ही कहा गया है | ब्रम्हा ने पहले जिन चार पुत्रों सनक, सनंदन, सनातन, सनत कुमार का सृजन किया उनकी सृष्टि रचना में कोई रूचि न होने से वें सब ब्रम्ह तत्व जानने में मग्न रहते थे |
अत: इन वीतराग पुत्रों के निरपेक्ष व्यवहार से ब्रम्हा जी कों महान क्रोध हुआ जिससे प्रचंड ज्योति का जन्म हुआ | उस क्रोध से ब्रम्हा जी के मस्तक से अर्धनारीश्वर रूद्र उत्पन्न हुआ | जिस रूप कों ब्रम्हा जी द्वारा स्त्री और पुरुष दो भागों में विभक्त किया गया जिसमे पुरुष का नाम “का” और स्त्री का नाम “या” रखा गया |
इसी रूद्र रूप से प्रजापत्य काल में ब्रम्हा जी द्वारा स्वयम्भू मनु और शतरूपा को प्रगट किया गया | जिनसे प्रियव्रत, उत्तानपाद, प्रसूति और आकूति का जन्म हुआ |
जिसमे आकुती का विवाह रूचि से और प्रसूति का विवाह दक्ष से किया गया | दक्ष ने प्रसूति से २४ कन्याओं कों जन्म दिया जिनके नाम क्रमश: श्रद्धा, लक्ष्मी, पुष्टि, धूति, तुष्टि, मेघा, क्रिया, बुद्धि, लज्जा, वपु, शांति, रिद्धि और कीर्ति हैं जिनमे इन तेरह का विवाह धर्म से किया गया |
बाकी कन्याओं में भृगु का ख्याति से और शिव का सती से विवाह हुआ, मरीची का सम्भूति से, अंगिरा का स्मृति से, पुलस्त्य का प्रीति से, पुलह का क्षमा से, कृति का सन्नति से, अत्री का अनुसुइया से, वशिष्ठ का उर्जा से, वह्वा का स्वाहा से, तथा पितरों का स्वधा से विवाह किया गया जिनसे सारी सृष्टि विकसित हई है |
विरोधाभाष भी बताया जाता है कोई ब्रम्हा के दश मानस पुत्र बताता है, कोई सत्रह तो कोई नौ पुत्र बतातें हैं जिस पर अनुसंधान की आवश्यकता को नकारा नहीं जा सकता है |
वराह कल्प का पहला मानव स्वयम्भू मनु को कहा जाता है और प्रथम स्त्री शतरूपा को कहा जाता है इन्हीं से समस्त संसार की उत्पत्ति हुई है | मनु की सन्तान होने के कारण वे मानव कहलाये जाते हैं |
मनुष्य में मन की ताकत है, विचार करने की ताकत है इसलिए उसे मनुष्य कहते हैं | हिंदू धर्म में कुल चौदह मनुओं का उल्लेख मिलता है | श्वेतवाराह कल्प में भी चौदह मनु का उल्लेख मिलता है जब कि महाभारत में आठ मनु का उल्लेख मिलता है |
जिनके नाम निम्न हैं :- स्वयम्भू, स्वरोचित, औत्तमी, तमस मनु, रैवत, चाक्षुष, वैवस्वत, सावर्णि, दक्ष सावर्णि, ब्रम्ह सावर्णि, धर्म सावर्णि, रूद्र सावर्णि, रौच्य या देव सावर्णि और भौत या इन्द्र सावर्णि इत्यादि |
महाराज मनु ने सप्त द्विपवती पृथ्वी पर राज्य किया एवं मनुस्मृति की रचना भी की जो आज अपने मूल रूप में नहीं मिलती है | मोक्ष की अभिलाषा से अपने राज-पाट कों अपने दोनों पुत्रों उत्तानपाद और प्रियव्रत के हवाले छोड़ कर पत्नि शतरूपा के साथ नैमिसारन्य तीर्थ कों चले गए, उनके बाद प्रियव्रत की प्रभुता अधिक मानी जाती है |
इन्ही के काल में ऋषि मरीची, अत्री, अंगीरस, पुलह, कृतु, पुलस्त्य और वशिष्ठ भी हुए जिन्होंने मानव कों सभ्य, सुसंस्कृत, श्रम श्राध्य, सुविधा संपन्न बनाने का कार्य किया |
ऋषि कश्यप का कुल
ब्रम्हा जी के मानस पुत्र ऋषि मरीची के विद्वान पुत्र कश्यप एक ऐसे ऋषि थे जिन्होंने बहुत से स्त्रियों से विवाह कर अपने कुल का विस्तार किया | इनको अनिष्ट्नेमी भी कहा जाता है इनकी माता का नाम कला था जो ऋषि कर्दम की पुत्री और ऋषि कपिलदेव की बहन थी | ऋषि कश्यप कों ऋषियों में श्रेष्ठ माना गया है |
पुराणों के अनुसार हम सब उन्हीं की संतान हैं | सुर, असुर और मानव के मूल पुरुष कश्यप ऋषि का आश्रम मेरु पर्वत के शिखर पर बताया जाता है | जहाँ समस्त देव, दानव और मानव उनकी आज्ञा का पालन करते थे | कश्यप ऋषि ने बहुत से स्मृतियों की रचना भी की |
पुराणों के अनुसार सृष्टि की रचना और विकास के काल में धरती पर सर्व प्रथम भगवान ब्रम्हा जी प्रकट हुए | ब्रम्हा जी से दक्ष प्रजापति का जन्म हुआ जिनकी पत्नि अस्किनी के गर्भ से 66 कन्याओं का जन्म हुआ | इनमे से तेरह कन्याओं का विवाह ऋषि कश्यप से हुआ जिनसे सृष्टि का विकास हुआ और कश्यप ऋषि सृष्टि कर्ता कहलाये जो सप्त ऋषियों में प्रमुख माने जाते हैं |
विष्णु पुराण के सातवें मनवन्तर में सप्त ऋषि इस प्रकार से हैं :- वशिष्ठ, कश्यप, अत्री, जमदाग्नि, गौतम, विश्वामित्र और भारद्वाज | श्री मद भागवत के अनुसार बाकी कन्याओं में 10 का विवाह धर्म के साथ, 27 कन्याओं का विवाह चन्द्रमा के साथ, 2 का विवाह भूत के साथ, 2 का विवाह अंगिरा के साथ, तथा 2 का विवाह क्रिशाश्च के साथ, शेष 4 कन्याओं का विवाह भी कश्यप के साथ हुआ |
कश्यप की कुल सत्रह पत्नियां इस प्रकार से हैं :- अदिति, दिति, दनु, काष्ठा, अरिष्टा, सरसा, इला, मुनि, क्रोधवशा, ताम्रा, सुरभि, तिमी, विनता, कद्रू, पतांगी, और यामिनी इत्यादि पत्नियाँ हैं |
अदिति :- पुराणों के अनुसार अदिति ने अपने गर्भ से बारह आदित्यों को जन्म दिया जिनमे नारायण का वामन अवतार भी शामिल है |
चाक्षुष मन्वन्तर काल में तुषित नामक बारह श्रेष्ठ गणों ने आदित्यों के रूप में जन्म लिया जो इस प्रकार से हैं :- विवस्वान, अर्यमा, पूषा, त्वष्टा, सविता, भग, धाता, विधाता, वरुण, इन्द्र, और त्रिविक्रम यानि भगवान वामन जो देवता कहलाये |
विवस्वान से मनु का जन्म हुआ, महाराज मनु को दश पुत्र प्राप्त हुए :- जो इक्ष्वाकु, नृग, धृष्ट, शर्याति, नरिष्यन्त, प्रांशु, नाभाग, दिष्ट, करुष, और प्रिशध इत्यादि हैं |
दिति:- दिति के गर्भ से हिरणाकश्यप, हिरण्याक्ष और एक पुत्री सिंहिका, का जन्म हुआ | इनके अलावां 49 और पुत्र हुए जो निसंतान रहें जिनको मरुन्दन कहा जाता हैं | जब कि हिरण्याकश्यप के चार पुत्र हुए जो क्रमश: अनुहल्लाद, हल्लाद, भक्त प्रह्ललाद और संह्ल्लाद हैं |
दनु :- दनु के गर्भ से कश्यप्को 61 महान पुत्रों की प्राप्ति हुयी जो इस प्रकार से हैं :- द्विमुर्धा, शम्बर, अरिष्ट, हयग्रीव, विभावसु, अरुण, अनुतापन, धुम्रकेश, विरूपाक्ष, दुर्जय, अयोमुख, शंकुशिरा, कपिल, शंकर, एकचक्र, महाबाहु, तारक, महाबल, स्वभार्नु, वृषपर्वा, महाबली पुलोम, और विप्रचिती इत्यादि हैं |
अन्य पत्नियों से
काष्ठा से घोड़े इत्यादि एक खुर वाले पशु,
अरिष्टा से गन्धर्व पैदा हुए,
सुरसा से यातुधान राक्षस का जन्म हुआ,
इला से वृक्ष – लता आदि पृथ्वी पर उत्पन्न होने वाले वनस्पति इत्यादि का जन्म हुआ |
रानी मुनि के गर्भ से अप्सराओं का जन्म हुआ तथा
क्रोधवषा से सांप, बिच्छु आदि विषैले जंतुओं का जन्म हुआ |
ताम्र से बाज, गिद्ध आदि शिकारी पंक्षियों का जन्म हुआ तो
सुरुभी से गाय, भैस आदि दों खुरों वाले पशुओं की उत्पत्ति हुयी |
सरसा ने बाघ आदि हिंसक जीवों कों पैदा किया तो
तिमी ने जलचर जंतुओं कों अपने संतान के रूप में जन्म दिया |
रानी विनीता के गर्भ से गरुड़ (विष्णु का वाहन ) और वरुण (सूर्य का सारथी) पैदा हुए |
कद्रू की कोंख से बहुत से नागों का जन्म हुआ जिसमे आठ प्रमुख नाग थे अनंत (शेष), वासुकी, तक्षक, कर्कोटक, पद्म, महापद्म, शंख, और कुलिक हैं |
पतंगी से पक्षियों का जन्म हुआ तो यामिनि के गर्भ से शलभों (पतंगों) का जन्म हुआ |
ब्रम्हा जी की आज्ञा से कश्यप ने वैश्वानर की दों पुत्री पुलोमा और कालका से भी विवाह किया जिनसे पौलोम और कालकेय नाम के साठ हजार रणवीर दानवों का जन्म हुआ जो कालांतर में निवातकवच के नाम से विख्यात हुए |
मान्यता यह है की कश्यप ऋषि के नाम पर ही काश्मीर का नाम पड़ा कारण समुचें काश्मीर पर ऋषि कश्यप और उनके पुत्रों का शासन रहा है | इनका इतिहास अति प्राचीन माना जाता है |
कैलाश पर्वत के आस-पास भगवान शिव गणों की सत्ता थी तथा दक्ष राजाओं का साम्राज्य भी था | इस पर शोध की आवश्यकता है जिससे इसको और भी साक्ष्य संपन्न बनाया जा सकें |

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