Friday, 24 June 2016

पाप और उसका फल.

मनुष्य जब रूप, रस, गंध, शब्द और स्पर्श
इन्द्रियों के इन पाँच विषयों में से किसी एक में
भी आसक्त हो जाता है, तब उसे राग-देष के पंजे
मे फँस जाना पडता है । फिर वह जिसमे राग
होता है उसको पाना और जिसमे देष होता है
उसका नाश करना चाहता है । यो करते-करते
वह बड़े-बड़े भयानक काम कर बैठता है और
निरंतर इन्द्रियों के भोगो में ही लगा रहता है
। इसमें उसके ह्रदय में लोभ-मोह, राग-देष छा
जाते है । इसके प्रभाव से उसकी धर्म-बुधि, जो
समय-समय पर उसे चेतावनी देकर पाप से
बचाया करती थी, नष्ट हो जाती है । तब वह
छल-कपट और अन्याय से धन कमाने में लगता है ।
जब दूसरो को धोखा देकर, अन्याय और अधर्म से
कुछ कमा लेता है, तब फिर इसी रीती से धन
कमाने में उसे रस आने लगता है । उसके सुहृद और
बुद्धिमान लोग उसके इस काम को बुरा बतलाते
और उसे रोकते है, तब वह भांति-भांति की
बहाने बाजियाँ करने लगता है । इस प्रकार
उसका मन सदा पाप में ही लगा रहता है, उसके
शरीर और वाणी से भी पाप होते है । वह पापी
जीवन होकर फिर पापीयों के साथ ही
मित्रता करता है और इसके फलस्वरूप न तो इस
लोक में सुख पाता है और न परलोक में ही उसे
सुख-शांति की प्राप्ति होती है ।

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