Sunday, 26 June 2016

नजर दोष


नजर का मनोविज्ञान:
भारतीय समाज में नजर लगना एक बहु प्रचलित शब्द है ।लगभग प्रत्येक परिवार में नजर दोष के उपाय किए जाते है ।घरेलु महिलाओं का मानना है कि बच्चों को नजर अधिक लगती है ।बच्चा यदि दूध पीना बंद कर दे तो भी यही कहा जाता है कि भला चंगा था,अचानक नजर लग गई है ।
इसके पश्चात शुरूआत होती है नजर उतारने की भिन्न-भिन्न विधियों की ।ऐसा क्या है कि बच्चों को ही अधिक नजर लगती है,बच्चे अबोध होते है इसलिए या बच्चे प्रतिक्रिया व्यक्त नही कर पाते इसलिए,या फिर वे मानसिक रूप् से वयस्कों की भांति सक्षम नही होते ।
यदि ऐसा ही हो तो फिर लोग ऐसा क्यों कहते है कि मेरे काम धंधे को नजर लग गई ।नया कपड़ा, जेवर आदि कट-कट जांए ,तो भी यही कहा जाता है कि किसी की नजर खा गई । वास्तव में किसी व्यक्ति विशेष द्वारा किसी दूसरे व्यक्ति विशेष द्वारा किसी दूसरे व्यक्ति विशेष के प्रति उसकी अंतरात्मा से उत्पन्न हुए विचारों की अभिव्यक्ति को प्रदर्शित न कर पाने की हताशा का प्रारूप् ही नजर है-चाहे वह अभिव्यक्ति अथवा उदगार सकारात्मक हो अथवा नकारात्मक ।
एक उदाहरण:
एक व्यक्ति का अनेक डाॅक्टरों व हकीमों से उसका इलाज कराया गया परंतु कोई लाभ न हुआ । अजीब सी परेशानी थी उसकी । वह उदासीन रहता था और किसी कार्य में उसका मन नही लगता था । डाॅक्टर उसे सोने की कोई ऊपरी हवा जैसी चीज परेशान कर रही है,जिसने उसके मन पर निय़त्रण कर लिया हो ,उसे लगता था कि मेरी झाड़-फूक करके मेरी नजर उतार दें,तो मै तुरन्त ठीक हो जाऊँगा। उसकी नजर उतारी गई जिसमें यही बताया गया कि उसके उपर कोई चीज थी ,जिसे उतार कर निकाल दिया गया है,इतना करने से वह ठीक हो गया ।
मन को हम तीन भागों में विभाजित कर सकते है :
चेतन अवस्था-वह अवस्था जिसमें हम क्रियाओं का बोध कर सकते है। अवचेतन अवस्था
-इसकी क्रियाए ध्यान की सीमा से परे है । अवचेतन अवस्था -इस अवस्था में क्रियाएँ गहरी परत में चली जाती है । चेतन के भी तीन प्रकार है-ज्ञानात्मक,भावनात्मक और क्रियात्मक मन और नजर का आपस में बड़ा रिश्ता है ।
नजर लगने पर व्यक्ति विशेष की प्रतिक्रिया यही होती है कि मन नहीं लग रहा । कुछ करने का मन नही करता और फिर उसका ध्यान भंग हो जाता है । सर्वप्रथम हम ध्यान के बारे में जानेंगे ।
ध्यान तीन प्रकार का होता है ऐच्छिक -इसे सक्रिय ध्यान कहा जाता है बिना प्रयत्न के ध्यान केंद्रित नही हो पाता । अनैच्छिक -हमारा ध्यान बिना प्रयास किए किसी वस्तु पर केंद्रित हो जाता है । आदत जन्य-यह ध्यान हमारे स्वभाव पर निर्भर करता है ।
नजर किसे लगती है ?:
नजर सभी प्राणियों को लगती है-चाहे वे जलचर हो,थलचर हों अथवा नभचर । मनुष्य हों या जानवर। नजर मानव द्वारा निर्मित सभी चीजों को लग सकती है । नजर निर्जीव वस्तुओं को भी लगती है । नजर आपकेे मन मस्तिष्क को निष्क्रिय कर सकती है । नजर देवी देवताओं को भी लगती है ।शास्त्रों में उल्लेख है कि शिव और पार्वती के विवाह के समय भगवान शिव की नजर उनकी सास सुनयना ने उतारी थी ।
नजर किस की लग सकती है:
सर्वप्रथम किसी व्यक्ति विशेष को अपनी ही नजर लगती है। ऐसा तब होता है जब वह स्वयं ही अपने बारे में अच्छे या बुरें विचार व्यक्त करता है अथवा बार-बार दर्पण देखता है आपको आपके आसपास के लोगों की नजर भी लग सकती है जो आपके साथ कार्य करते हैं।
आपसे ईर्ष्या करने वालों की नजर भी आपको लग सकती है । आपसे प्रेम करने वालों की नजर लग सकती है । किसी अनजान व्यक्ति की नजर भी लग सकती है । जानवरों,पक्षियों आदि की नजर भी लगती है भीड़ की नजर भी लगती है ।
नजर की पहचान क्या है ?:
नजर व्यक्ति की शारीरिक संरचना को भी प्रभावित करती है ।नजर को पहचानने के लिए सूक्ष्म दृष्टि का होना अनिवार्य है । कोई पारखी आसानी से नजर की पहचान कर सकता है । यकीनन आप भी कर सकते है -अवश्यकता है मात्र पैनी दृष्टि की ।
नजर का वैज्ञानिक आघार वैज्ञानिकि दृष्टिकोण से देखें,तो हम पाएगें कि हमारे शरीर के रोमकूप बंद हो गए है जिसके परिणामस्वरूप् हमारा शरीर किसी भी बाहरी स्रोत को ग्रहण कर पाने में स्वयं को असमर्थ पाता है उसे हवा,सर्दी और गर्मी का अहसास नही हो पाता । रोमकूप बंद होने के कारण व्यक्ति के शरीर के भीतर का तापमान भीतर ही समाहित रहता है और बाहरी वातावरण का उस पर प्रभाव नही पड़ता ,जिससे उसके शरीर में पंचतत्वों का संतुलन बिगडने लगता है और शरीर में आइरन की मात्रा बढ जाती है ।
यही आयरन रोमकूपों से न निकल पाने के कारण आंखों से निकलने की चेष्टा करता है,जिसके फलस्वरूप् आंखों की निचली पलक फूल अथवा सूज जाती है । इन्ही रोमकूपों को खोलने के लिए लोग अनेकानेक तरीकों से नजर उतारने का प्रयास करते है ।
नजर उतारने का वैज्ञानिक आधार:
संसार की प्रत्येक वस्तु में आकर्षण शक्ति होती है अर्थात प्रत्येक वस्तु वातावरण से स्वयं कुछ न कुछ ग्रहण करती है । आमतौर पर नजर उतारने केलिए उन्ही वस्तुओं का उपयोग किया जाता है जिनकी ग्रहण करने की क्षमता तीव्र होती है ।
उदाहरण के लिए आप किसी पात्र में सरसों का तेल भरकर खुला छोड़ दें ,पायेगें कि वातावरण के साफ व स्वच्छ होने के बावजूद उस पर तेल अनेकानेक छोटे-छोटे कण चिपक जाते है । ये कण तेल की आकर्षण शक्ति से प्रभावित होकर चिपकते है ।
इसी प्रकार नजर उतारने में उपयोग में लाई जाने वाली अन्य चीजों की चुबंकीय क्षमता तीव्र होती हेै जैसे नीबू,लालमिर्च,कपूर ,फिटकरी,मोर के पंख,बूदी का लडडू और अन्य अनेकानेक वस्तुएं जो नजर उतारने में प्रयोग की जाती है ।
मोर पंख और नजर :
क्या आप जानते है कि मोरपंख से नजर शीघ्र उतर जाती है? आपने देखा होगा कि साधु-सन्यासी लोग आपने साथ मोरपंख रखते है ओर पीडि़त के शरीर पर उससे हवा करते है और वह शीघ्र ठीक होने लगता है । ऐसा क्यों ? इसके पीछे वैज्ञानिक कारण छिपा है।
हमने अपने शोध में पाया कि मोर जिस स्थान पर नाचता है,उस स्थान की मिट्टी से आयरन लगभग समाप्त हो जाता है । इसी को आधार मानकर मानव शरीर में आयरन की बढ़ी हुई मात्रा को मोरपंख से हवा देकर छिड़काया जाता है ।
मोरपंख से हवा देते समय मंत्रों का उच्चारण भी किया जाता है कुछ लोग ऐसा सेाचते है कि शायद मंत्रोउच्चारण की शक्ति से नजर या उपरी हवा भाग जाती है,परंतु वास्तविकता ऐसी नही है वास्तव में मोरपंख से हवा देने का क्रम एक समान रहे व क्रिया करने वाले का ध्यान एकाग्रचित रहे इसलिए यह क्रिया करते समय मंत्र का सहारा लिया जाता है ।
विद्वानों की नजर में नजर:
हमारे प्राचीन विद्वान जानते थे कि आत्माओं को किन गंध-सुगधों से प्यार अथवा नफरत है अर्थात कौन -सी सुगधं आत्माओं को अपनी ओर आकर्षित करती है व कौन-सी गंध से उन्हे नफरत है और वे स्थान को छोड़कर भाग जाती है।
संसार में उपलब्ध सभी चीजें -चाहें वे सजीव हो अथवा निर्जीव अपने वास्तविक गुणों के आधार पर किसी न किसी ग्रह से सबंध रखती है, इसलिए ग्रह दशाओं का उपचार भी इसी विधि से किया जाता है ।
नजर अथवा उपरी हवाएं आमतौर पर शारीरिक व मानसिक रूप से कमजोर लोगों को सताती है, सक्षम लोगों पर इनका प्रभाव बहुत कम होता है, या फिर नही होता । इसलिए नजर अथवा ऊपरी हवाओं से ग्रस्त किसी व्यक्ति को उनसे बचाव के उपाय बताने के पूर्व उसकी शारीरिक संरचना व क्षमताओं के विषय में जानना आवश्यक है ।
उनका मानना था कि नजर उतारने के पश्चात नजर लगने के लक्षण समाप्त होने लगते है जिससे पता चलता है कि नजर उतर गई हैं ।
उन्होने जनमानस को साधारण तौर-तरीके से अवगत कराया और वैज्ञानिक आधार को अपने तक सीमित रखा ।
विभिन्न प्रकार के शरीर:
स्थूल शरीर,स्थूल शरीर से तात्पर्य हड्डी और मज्जा से निर्मित बाहरी शरीर से है,जिसमे प्राण नही हैं ।
सूक्ष्म शरीर:
सूक्ष्म शरीर से तात्पर्य शरीर की सूक्ष्मता से है,जिसके विश्लेषण से किसी व्यक्ति की सूक्ष्म शारीरिक क्रियाओं की जानकारी प्राप्त की जा सकती है ।
अति सूक्ष्म शरीर:
अति सूक्ष्म शरीर वह होता है ,जिसमें अपने अतिरिक्त बाहरी चीजों को देखने की क्षमता होती है ।
मानस शरीर:
जब मानव शरीर में मस्तिष्क अपना कार्य करना प्रारंभ कर दें ,तो वह मानस शरीर कहलाता है ।
आत्मिक शरीर:
जब मानव शरीर में आत्मा का प्रवेश हो जाता है और आत्मा तत्व को जानने लगती है ,तो ऐसा शरीर आत्मिक शरीर कहलाता है ।
ब्रह शरीरः
ब्रहााड में स्थित तत्वों से मानव शरीर का एकीकरण व प्राकृतिक तत्वों से मिलन होने पर ब्रह शरीर कहलाता है ।
नजर मारक क्षमता:
प्रत्येक मनुष्य की देखने की अपनी क्षमता होती है और नजर की दूरी की एक निश्चित सीमा है। आंखो से एक उर्जा निकलती है,जिसके प्रकाश से हम दूसरों को देख पाते है ।
संभवतः ऐसा नजर दोष प्रकाशीय किरणों द्वारा होता है। आँखों के रंग भी भिन्न-भिन्न होते है । सामान्यता हमें काली,नीली ,पीली,भूरी ,हरी और सफेद आंखे देखने में आती हैं । आंखों के रंगों की भिन्नता के समान ही इनकी प्रकाशीय किरणों का आकर्षण भी भिन्न-भिन्न होता है । काने व्यक्ति की नजर में विशेष मानक क्षमता रहती है और यह तेजी से असर डालती है । इसके विपरीत भैगें व्यक्ति की नजर आसानी से नही लगती ।
कब लगती है नजर :
कोई व्यक्ति जब अपने सामने के किसी व्यक्ति अथवा उसकी किसी वस्तु को ईर्ष्यावश देखे और फिर देखता ही रह जाए, तो उसकी नजर उस व्यक्ति अथवा उसकी वस्तु को तुरन्त लग जाती है ।ऐसी नजर उतारने हेतु विशेष प्रयत्न करना पड़ता है अन्यथा नुकसान की संभावना प्रबल हो जाती है ।
विशेष उपचार-
जब भी आपको ऐसा आभास हो कि आपको किसी की नजर लग गई है तो तुरंत दो बार थूक दें ।
बुरी नजर और ऊपरी हवाओं से बचाव के कुछ उपाय:
दोनों संध्याओं तथ मध्याह के समय-शयन,अध्ययन,स्नान,तेल मालिश ,भोजन या यात्रा नही करनी चाहिऐं ।
विशेषःदोनों संध्याओं से तात्पर्य सूर्यास्तम से कुछ पहले व कुछ देर पश्चात के समय से है ।
दोपहर संध्या या आधी रात के समय किसी चैराहे पर नही रहना चाहिए ।
संध्या के समय भेाजन,स्त्री संग निद्रा और स्वाध्याय का त्याग करना चाहिए ।इस समय भेाजन करने से व्याधि,स्त्री संग से क्रूर संतान का जन्म ,सोने से लक्ष्मी का हास और अध्ययन एवं स्वाध्याय से आयु का नाश होता है ।
रात्रि में श्मशान,देवमंदिर,चैराहे ,उपवन चैत्यवृक्ष ,सूने घर व जंगल का सदैव त्याग करना चाहिए ,क्योंकि इस समय इन सभी स्थानों पर ऊपरी हवायें जाग्रत और सक्रिय रहती है ।
अमावस्या के दिन वृक्ष की डाल न काटें ,नही उसकी पत्ती तोडें ।
जूठे मुंह ,नग्न होकर दूसरे की शय्या पर टूटी खाट पर एवं सूने घर में नही सोना चाहिए । बांस व पलाश की लकड़ी पर सोना अशुभ है । भीगे पैर सोने से लक्ष्मी का हास होता है ।
पुरूष जातक सोते समय मुख साफ रखें ओर ललाट से तिलक तथा सिर से पगड़ी उतार दें
यथासंभव दिन में उत्तर व रात्रि में दक्षिण की ओर मुख करके मल-मूत्र का त्याग करें ।
किसी वृक्ष के नीचे श्मशान के निकट मूत्र त्याग न करें अन्यथा भारी हानि का सामना करना पड़ सकता है ।
किसी जलाशय,कुआं,बावड़ी, या तालाब से कम से कम सोलह हाथ की दूरी पर ही मल-मूत्र का त्याग करें ।
मल-मूत्र त्याग करते समय मुख सामने की ओर ही रखें -न तो ऊपर की ओर देखें ,न ही मल -मूत्र की ओर । इस समय जोर-जोर से सांस भी न लें ।
गौशाला,खेत ,हरी-भरी घास और देवालय या किसी बिल में अथवा किसी चौराहे,गोबर,पुल या भस्म और कोयले की ढेर ,पर्वत की चोटी या किसी बांबी पर या फिर लोगों के घरों के आसपास,अग्नि में या उसके समीप और गेहूँ में भूलकर भी मल -मूत्र न करें ।
अग्नि,सूर्य,चंद्र,गाय,ब्राह्मण,स्त्री,वायु,के वेग और देवालय की ओर मुख करके मलमूत्र त्याग न करें । ऐसा करने पर आयु व बुद्वि का हास होता है व गर्भपात की प्रबल संभावना बन जाती है।
प्रथमा ,पष्ठी,अष्टमी,एकादशी चर्तुदशी ,पूर्णमासी और अमावस्या को शरीर पर तेल व उबटन आदि न लगाए ।तेल ,उबटन आदि केवल सोमवार,बुधवार व शनिवार को लगाना लाभकारी होता है।
बुरा स्वप्न देखने के पश्चात नग्न होकर स्नान नही करना चाहिए ।
श्मशान से लोैटने पर हजामत के पश्चात या स्त्री संग के पश्चात नग्न होकर स्नान नही करना चाहिए ।
नए वस्त्र सदैव जल से सिक्त कर ही पहनने चाहिए ।
भीगे वस्त्र नही पहनने चाहिए।
दूसरों के पहने वस्त्र नहीं पहनने चाहिए।
एक वस्त्र में दान,आहुति ,स्वाध्याय,हवन,यज्ञ,देवार्चना व पितृ तर्पण करना अशुभ है ।
भोजन करते समय जो भेाज्य पदार्थ गिर जाए अथवा भेाजन करके जिस अन्न को छोड़ दिया जाय,उसे फिर नही खाना चाहिए।
गाय ,कुत्ते ,रोगी ,रजस्वलास्त्री,पक्षी ,कौए ,चांडाल,वेश्या,विद्वान से निदिंत समूह के लिए घोषित अथवा श्राद्व का ,सूतकका ,शूद्र का या फिर किसी के द्वारा लाघां हुआ भोजन ग्रहण नही करना चाहिए ।
वैध,रंगसमाज ,घोबी,अभिमानी,नपुसंक ,चोर ढोगी ,तपस्वी जल्लाद,तेली,लोहार,आदि का भोजन ग्रहण नही करना चाहिए ।
झाडू,बकरी,बिल्ली ,कुत्ते,भेड़,गधे और ऊँट की धूलि से सदैव बचकर रहना चाहिए ।यदि ऐसी स्थिति से कभी गुजरना पड़े, तो गंगाजल डालकर नहायें अथवा उसे शरीर पर छिडकें ।
अक्सर देखने में आता है कि किसी के घर से बाहर जाते समय कोई दूसरा उसे टोक देता है जैसे कहां जा रहे हो ,सुनों कभी मत जाओं ,रूको, जाने का क्या फायदा आदि ।
इस तरह से टोकना काम पर निकले उस व्यक्ति के लिए अशुभ और अनिष्ठसूचक होता है ।अतः ऐसी स्थिति से बचना चाहिऐ ।
अग्नि ,और शिवलिंग ,भगवान शंकर और नंदी की प्रतिमाओं ,घोड़े और सांड़,पति और पत्नी,गाय और ब्राह्मण ,ब्राह्मण और अग्नि,दो अग्निपुजों ,दो ब्राहणों तथा सूर्य व चंद्र की प्रतिमओं के बीच से नही निकलना चाहिऐं ।
त्याजित दैनिक कर्म जिनसे उपरी हवा प्रभावी हो जाती है :
किसी का दिया सेब कभी नहीं खाना चाहिए।क्योंकि सेब पर ऊपरी क्रियाएं करना आसान होता है और वे अत्यतं प्रभावी होती है ।
जल के भीतर मलमूत्र का त्याग करने या थूकना नही चाहिए ।
सूर्य की ओर देखते हुए पेशाब नही करना चाहिए ।
अग्नि पर पेशाब नहीं करना चाहिए ।श्वेत आक ,रात की रानी,पीपल के पेड़ के नीचे मलमूत्र त्याग नही करना चाहिए।
सफेद रंग की वस्तुऐं जैसे चावल,बूरा मिठाई आदि खाने के पश्चात उन स्थानों पर नहीं गुजरना चाहिए,जहाँ हवाओं का वास होता है ।
मेहंदी इत्र आदि लगाकर भी उन स्थानों पर नही जाना चाहिए,जहाँ हवाओं का वास होता है।
प्रभावित व्यक्ति की पहचान:
ऐसा व्यक्ति बार-बार बुरे स्वप्न देखता है ।
ऐसे व्यक्ति की चहेरा व आँखे लाल हो जाती है ।
उसके पैरों ,सिर व पेट में दर्द होता है ।
उसे बार-बार पसीना आता है ।
उसकी आदत अच्छी हों तो उसके तन से सुगंध ओर बुरी हो तो दुर्गधं आती है ।
उतारा:
उतारा शब्द का तात्पर्य व्यक्ति विशेष पर हावी बुरी हवा अथवा बुरी आत्मा,नजर आदि के प्रभाव को उतारने से है । उतारा वह वस्तु होेती है जो सीधा आत्मा पर वार करती है ।आमतौर पर इस प्रकार के उतारे मिठाइयों द्वारा किये जाते है क्योंकि मिठाइयों की ओर शीघ्र आकर्षित होते है ।
उतारा करने की विधि:
उतारे की वस्तु सीधे हाथ में लेकर आदेशित व्यक्ति के सिर से पैर की ओर सात अथवा ग्यारह बार घुमाई जाती है इससे वह बुरी आत्मा उस वस्तु में आ जाती है । उतारा की क्रिया करने के बाद वह वस्तु किसी चैराहे ,निर्जन स्थान या पीपल के नीचे रख दी जाती है और व्यक्ति ठीक हो जाता है ।
किस दिन मिठाई से उतारा करना चाहिए ।:
रविवारःरविवार को तबक अथवा मेवा युक्त बर्फी से उतारा करना चाहिए ।
सोमवारःसोमवार को बर्फी से उतारा करके गाय को खिलाए।
मंगलवारः मोती चूर के लडडू से उतारा करें व उसे कुत्ते को खिलाए।
बुधवारःइमरती से उतारा करें व उसे कुत्ते को डालें ।
गुरूवारः गुरूवार को सायं काल एक दोने में अथवा कागज पर पांच मिठाइयां रखकर उतारा करें ।उतारा करके उसमें छोटी इलायची रखें व घूपबती जलाकर किसी पीपल के वृक्ष के नीचे पश्चिम दिशा में रखकर घर वापस जाएं।
ध्यान रहें ,वापस जाते समय पीछे मुड़कर न देखें । घर आकर हाथ पैर घोकर व कुल्ला करके ही अन्य कार्य करने चाहिए ।
शुक्रवारः मोतीचूर के लडडू से उतारा करना चाहिए व लडडू कुते को खिलाएं या चैराहे पर रखें ।
शनिवारः इमरती या बूंदी का लडडू प्रयोग में लाएं व उसे उतारे के बाद कुत्ते को खिलाए ।
नजर उतारने अथवा उतारे की वस्तुंए:
फल ,फूल ,मिठाइयां, बुदी का लडडू, इमरती,बर्फी,
उबले चावल, दही, बुरा
राई,नमक,
काली सरसों, पीली सरसों
गुग्ल,जायफल
मेहदी,काले तिल
सिंदूर ,रोली,हनुमान जी वाला सिदूंर
लाल मिर्च,झाडू, मोरपंख,
लौग,नीम के पत्तों की धूनी
कड़वे तेल की रूई की बाती
कपूर,नीबू उबले अण्डे़
उपरी हवाओं से बचाव हेतु कुछ अनुभूत प्रयोग:
लहसून के तेल में हींग मिलाकर दो बूंद नाक में डालने से उपरी बाधा दूर होती है ।
रविवार को सहदेई की जड़,तुलसी के आठ पते और आठ काली मिर्च किसी कपडे़ में बाँधकर काले धागे से गले बाँधने से उपरी हवाओं सताना बंद कर देती है ।
नीम के पत्ते ,हींग,सरसों बच व साँप की केचुली की धुनी से भी उपरी बाधा दूर होती है ।
रविवार को काले धतूरे की जड़ हाथ में बाँधने से उपरी बाधा दूर होती है ।
गंगाजल में तुलसी के पत्ते व काली मिर्च पीसकर घर में छिडकने से ऊपरी हवाओं से मुक्ति मिलती है ।
हनुमान जी की उपासना अत्यंत लाभकारी होती है ।
रामरक्षा कवच या रामवचन कवच पढ़ने से तुरंत लाभ मिलता है।
पेरीडाॅट ,संग सुलेमानी,क्राइसों लाइट,कार्नेलियन जेट साइट्रीन, क्राइसो प्रेज जैसी रत्न घारण करने से भी लाभ होता है ।
गायत्री मंत्र का जप करें,सुबह की अपेक्षा संध्या को किया गया गायत्री मंत्र का जप अधिक लाभकारी होता है ।

भ्रांति:
लेाग समझते है कि ये तांत्रिक क्रियाएं है अथवा ऐसा भी कहते है कि किसी ने कुछ करवा दिया है,परंतु वास्तविकता बिल्कुल विपरीत है,क्योंकि इससें नजर का कोई लेना देना नही है तंत्र विधा तो स्वयं में सरल व जनमानस के कल्याण हेतु प्रयोग में लाई जाती है । हाथ की सफाई को तंत्र से जोड़ कर खुद तथाकथित लोगों ने इसे भ्रमित विधा का रूप दे दिया है ।
आज का युग वैज्ञानिक युग है,अतः आप भी वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनायें और तर्क का उपयोग करें ।

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