एक बार एक तालाब में दो मेंढक रहते थे जिनमें से एक बहुत मोटा था
और दूसरा पतला | सुबह सुबह जब वे खाने की तलाश में निकले थे
अचानक वे दोनों एक दूध के बड़े बर्तन में गिर गये जिसके किनारे बहुत
चिकने थे और इसी वजह से वो उसमें से निकल नहीं पा रहे थे |
दोनों काफ़ी देर तक दूध में तैरते रहे उन्हें लगा कि कोई इंसान आएगा
और उनको वहाँ से निकाल देगा लेकिन घंटों तक वहाँ कोई नहीं आया
अब तो उनकी जान निकली जा रही थी | मोटा मेढक जो अब पैर
चलाते चलाते थक गया था बोला कि मेरे से अब तैरा नहीं जा रहा और
कोई बचाने भी नहीं आ रहा है अब तो डूबने के अलावा और कोई चारा
नहीं है | पतले वाले ने उसे थोड़ा ढाँढस बढ़ांते हुए कहा कि मित्र कुछ देर
मेहनत से तैरते रहो ज़रूर कुछ देर बाद कोई ना कोई हल निकलेगा |
इसी तरह फिर से कुछ घंटे बीत गये मोटे मेंढक ने अब बिल्कुल उम्मीद
छोड़ दी और बोला मित्र में थक चुका हूँ और अब नहीं तैर सकता मैं तो
डूबने जा रहा हूँ | दूसरे मेंढक ने उसे बहुत रोका लेकिन वह जिंदगी से हार
चुका था और खुद ही तैरना छोड़ दिया और डूब कर मर गया| पतले मेंढक
ने अभी तक हार नहीं मानी थी और वो पैर चलाता रहा कुछ देर बाद
उसने महसूस किया ज़यादा देर दूध के मथे जाने से उसका मक्खन बन
चुका था और अब उसके पैरों के नीचे ठोस जगह थी उसी का सहारा
लेकर मेंढक ने छलाँग मारी और बाहर आ गया और अंत में उसकी जान
बच गयी | अपने मित्र की मौत का उसे बड़ा दुख था काश कुछ देर और
संघर्ष करता तो वे दोनों बच सकते थे |
तो मित्रों,समस्या कितनी भी बड़ी हो कभी उससे हारना नहीं चाहिए
प्रयास करते रहिए एक ना एक बार आप ज़रूर सफल होंगे यही इस
कहानी की शिक्षा है :)
और दूसरा पतला | सुबह सुबह जब वे खाने की तलाश में निकले थे
अचानक वे दोनों एक दूध के बड़े बर्तन में गिर गये जिसके किनारे बहुत
चिकने थे और इसी वजह से वो उसमें से निकल नहीं पा रहे थे |
दोनों काफ़ी देर तक दूध में तैरते रहे उन्हें लगा कि कोई इंसान आएगा
और उनको वहाँ से निकाल देगा लेकिन घंटों तक वहाँ कोई नहीं आया
अब तो उनकी जान निकली जा रही थी | मोटा मेढक जो अब पैर
चलाते चलाते थक गया था बोला कि मेरे से अब तैरा नहीं जा रहा और
कोई बचाने भी नहीं आ रहा है अब तो डूबने के अलावा और कोई चारा
नहीं है | पतले वाले ने उसे थोड़ा ढाँढस बढ़ांते हुए कहा कि मित्र कुछ देर
मेहनत से तैरते रहो ज़रूर कुछ देर बाद कोई ना कोई हल निकलेगा |
इसी तरह फिर से कुछ घंटे बीत गये मोटे मेंढक ने अब बिल्कुल उम्मीद
छोड़ दी और बोला मित्र में थक चुका हूँ और अब नहीं तैर सकता मैं तो
डूबने जा रहा हूँ | दूसरे मेंढक ने उसे बहुत रोका लेकिन वह जिंदगी से हार
चुका था और खुद ही तैरना छोड़ दिया और डूब कर मर गया| पतले मेंढक
ने अभी तक हार नहीं मानी थी और वो पैर चलाता रहा कुछ देर बाद
उसने महसूस किया ज़यादा देर दूध के मथे जाने से उसका मक्खन बन
चुका था और अब उसके पैरों के नीचे ठोस जगह थी उसी का सहारा
लेकर मेंढक ने छलाँग मारी और बाहर आ गया और अंत में उसकी जान
बच गयी | अपने मित्र की मौत का उसे बड़ा दुख था काश कुछ देर और
संघर्ष करता तो वे दोनों बच सकते थे |
तो मित्रों,समस्या कितनी भी बड़ी हो कभी उससे हारना नहीं चाहिए
प्रयास करते रहिए एक ना एक बार आप ज़रूर सफल होंगे यही इस
कहानी की शिक्षा है :)
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