गोदावरी नदी के तट पर संत एकनाथ बैठे हुए थे। उनके दर्शन के लिए दूर-दूर से लोग आते थे। वह जिस गांव में रहते थे, वहां एक चबूतरा था। जहां दिनभर संत विरोधियों का जमघट रहता था।
एक दिन वहां एक व्यक्ति आया और तब उन्होंने कहा, तुम संत एकनाथ को नाराज करके दिखाओ। इसके बदले में हम तुम्हें धन देंगे। लालच के वश में वशीभूत वह व्यक्ति संत एकनाथ के पास जा पहुंचा।
वह व्यक्ति ध्यान में बैठे हुए संत एकनाथ को तरह-तरह की गतिविधियों से परेशान करने लगा। एकनाथ शांत रहे। उन्होंने आंखे खोली और उससे कहा, बंधु आज का भोजन तुम यहीं करके जाओ।
व्यक्ति ने सोचा भी नहीं था कि जिन संत को वह इतना प्रताड़ित कर रहा है वह उसे भोजन के लिए भी आमंत्रित करेंगे। उनकी इस क्षमाशीलता को देख वह व्यक्ति अभिभूत हो गया।
एक दिन वहां एक व्यक्ति आया और तब उन्होंने कहा, तुम संत एकनाथ को नाराज करके दिखाओ। इसके बदले में हम तुम्हें धन देंगे। लालच के वश में वशीभूत वह व्यक्ति संत एकनाथ के पास जा पहुंचा।
वह व्यक्ति ध्यान में बैठे हुए संत एकनाथ को तरह-तरह की गतिविधियों से परेशान करने लगा। एकनाथ शांत रहे। उन्होंने आंखे खोली और उससे कहा, बंधु आज का भोजन तुम यहीं करके जाओ।
व्यक्ति ने सोचा भी नहीं था कि जिन संत को वह इतना प्रताड़ित कर रहा है वह उसे भोजन के लिए भी आमंत्रित करेंगे। उनकी इस क्षमाशीलता को देख वह व्यक्ति अभिभूत हो गया।
शिक्षा- आपको क्रोध तभी आएगा, जब आप चाहेंगे। जब तक आप नहीं चाहेंगे तो आपको क्रोध नहीं आएगा। संत एकनाथ ने अपने क्रोध पर काबू रखने के सिद्धि अपने धैर्य के जरिए पाई थी। जिसके कारण ही वो विषम परिस्थितियों भी भी सहज बने रहते थे।
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