Wednesday 29 June 2016

औरत का सफर..


बाबुल का घर छोड़ कर पिया के घर आती है..
एक लड़की जब शादी कर औरत बन जाती है..
अपनों से नाता तोड़कर किसी गैर को अपनाती है..
अपनी ख्वाहिशों को जलाकर किसी और के सपने सजाती है..
सुबह सवेरे जागकर सबके लिए चाय बनाती है..
नहा धोकर फिर सबके लिए नाश्ता बनाती है..
पति को विदा कर बच्चों का टिफिन सजाती है..
झाडू पोछा निपटा कर कपड़ों पर जुट जाती है..
पता ही नही चलता कब सुबह से दोपहर हो जाती है..
फिर से सबका खाना बनाने किचन में जुट जाती है..
सास ससुर को खाना परोस स्कूल से बच्चों को लाती है..
बच्चों संग हंसते हंसते खाना खाती और खिलाती है..
फिर बच्चों को टयूशन छोड़,थैला थाम बाजार जाती है..
घर के अनगिनत काम कुछ देर में निपटाकर आती है..
पता ही नही चलता कब दोपहर से शाम हो जाती है..
सास ससुर की चाय बनाकर फिर से चौके में जुट जाती है..
खाना पीना निपटाकर फिर बर्तनों पर जुट जाती है..
सबको सुलाकर सुबह उठने को फिर से वो सो जाती है..
हैरान हूं दोस्तों ये देखकर सौलह घंटे ड्यूटी बजाती है..
फिर भी एक पैसे की पगार नही पाती है..
ना जाने क्यूं दुनिया उस औरत का मजाक उडाती है..
ना जाने क्यूं दुनिया उस औरत पर चुटकुले बनाती है..
जो पत्नी मां बहन बेटी ना जाने कितने रिश्ते निभाती है..
सबके आंसू पोंछती है लेकिन खुद के आंसू छुपाती है..
नमन है मेरा घर की उस लक्ष्मी को जो घर को स्वर्ग बनाती है..
ड़ोली में बैठकर आती है और अर्थी पर लेटकर जाती है..

No comments:

Post a Comment