Monday 1 February 2016

शिव जी का किरात वेष में प्रकट होना


इंद्र के उपदेश तथा व्यास जी की आज्ञा से अर्जुन भगवान महेश्वर की आराधना करने लगे । उनकी उपासना से ऐसा उत्कृष्ट तेज प्रकट हुआ, जिससे देवगण विस्मिल हो गये । वे शिव जी के पास गये और बोले - ‘प्रभो ! एक मनुष्य आपकी तपस्या में निरत है । वह जो कुछ चाहता है, उसे आप प्रदान करें ।’ ऐसा कहकर देवता विनम्र भाव से भगवान शिव के चरणों में दृष्टि लगाकर खड़े हो गये ।
उदारबुद्धि भगवान शिव देवताओं के उस वचन को सुनकर ठठाकर हंसकर पड़े, क्योंकि इसके पीछे छिपी हुई देवताओं की स्वार्थ बुद्धि से वे परिचित थे । उन्होंने देवताओं से कहा कि, ‘तुम लोग अपने - अपने स्थान को लौट जाओ । मैं तुम लोगों का कार्य अवश्य पूर्ण करुंगा ।’
एक दिन मूक नामक दैत्य शूकर का रूप धारण कर अर्जुन की तपस्थली के सन्निकट आया । उसे दुराचारी दुर्योधन ने अर्जुन को मार डालने के उद्देश्य से भेजा था । वह वेगपूर्वक पर्वत शिखरों को उखाड़ता, वन के वृक्षों को छिन्न - भिन्न करता तथा भयंकर शब्द करता हुआ आया । अर्जुन ने उसे देखकरविचार किया कि यह क्रूरकर्मा निश्चय ही मेरा अनिष्ट करने के लिए आया हैं । क्योंकि जिसका दर्शन करते ही मन प्रसन्न हो जाएं वह अपना हितैषी होता है और जिसे देखकर मन में व्याकुलता उत्पन्न हो, वह निश्चय ही अपना शत्रु है । ऐसा सोचकर अर्जुन अपना धनुष - बाण लेकर खड़े हो गये ।
उसी समय भगवान शंकर भी अर्जुन की रक्षा और उनकी भक्ति की परीक्षा तथा उस दैत्य का विनाश करने के उद्देश्य से वहां शीघ्र प्रकट हो गये । वे उस समय किरात वेष में धनुष - बाण धारण किए हुए थे । उनके गण भी उसी वेष में थे । अचानक शूकर बड़े ही वेग से अर्जुन की ओर आया । उधर भगवान शंकर भी अर्जुन की रक्षा के लिए आगे बढ़े । एक ही साथ किरात वेषधारी भगवान शिव और अर्जुन दोनों ने शूकर को लक्ष्य करके अपना बाण चलाया । शिव जी के बाण का लक्ष्य शूकर का पुच्छ भाग था और अर्जुन ने उसके मुख को अपना निशाना बनाया था । शिव जी का बाम उसके पुच्छ भाग में प्रवेश करके मुख के रास्ते निकल गया और भूमि में विलीन हो गया । अर्जुन का बाण शूकर के पिछले भाग से निकलकर उसके बगल में गिर गया । वह शूकररूपधारी दैत्य उसी क्षण मरकर भूमि पर गिर पड़ा ।
शिव जी ने अपना बाण लाने के लिए तुरंत अपने अनुचर को भेजा । उसी समय अर्जुन भी अपना बाण लेने के लिए वहां आये । एक ही समय रुद्रानुचर और अर्जुन दोनों बाण उठाने के लिए पहुंचे । अर्जुन ने भगवान शिव के अनुचर को डरा धमका कर वह बाण उठा लिया । भगवान शिव के अनुचर ने कहा - ‘यह हमारा सायक है । आप इसे छोड़ दीजिए ।’ अर्जुन बोले - ‘वनचर ! तू बड़ा मूर्ख है । इस बाण को मैंने अभी छोड़ा है । इस पर मेरा नाम अंकित है ।’
शिव अनुचर ने उस बाण को अपने स्वामी का बताया । इस प्रकार दोनों में बड़ा विवाद हुआ और रुद्र - अनुचर ने सारी बाते किरात - वेषधारी भगवान शिव को बतायी । फिर महादेव जी का अर्जुन के साथ घोर युद्ध हुआ । भगवान शिव ने अर्जुन की परीक्षा के लिए यह लीला रची थी । उसी समय भगवान शिव ने अर्जुन को अपने दिव्य स्वरूप का दर्शन कराया । फिर अर्जुन ने उनसे अपनी भूल के लिए क्षमा मांगी । भगवान शिव ने उनपर प्रसन्न होकर उन्हें सभी प्राणियों के लिए दुर्जय अपना पाशुपर नामक अस्त्र तथा भक्ति का वर दिया ।

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