रावण के वध के बाद अयोध्या पति श्री राम ने राजपाट संभाल लिया था और प्रजा राम राज्य से प्रसन्न थी, एक दिन भगवान महादेव की इच्छा श्री राम से मिलने की हुई,
पार्वती जी को संग लेकर महादेव कैलाश पर्वत से अयोध्या नगरी के लिए चल पड़े, भगवान शिव और मां पार्वती को अयोध्या आया देखकर श्री सीता राम जी बहुत खुश हुए,
माता जानकी ने उनका उचित आदर सत्कार किया और स्वयं भोजन बनाने के लिए रसोई में चली गईं, भगवान शिव ने श्री राम से पूछा- हनुमान जी दिखाई नहीं पड़ रहे हैं, कहां हैं ?
श्री राम बोले- वह बगीचे में होंगे, शिव जी ने श्री राम जी से बगीचे में जाने की अनुमति मांगी और पार्वती जी के साथ बगीचे में आ गए, बगीचे की खूबसूरती देखकर उनका मन मोहित हो गया,
आम के एक घने वृक्ष के नीचे हनुमान जी दीन-दुनिया से बेखबर गहरी नींद में सोए थे और एक लय में खर्राटों से राम नाम की ध्वनि उठ रही थी, चकित होकर शिव जी और माता पार्वती एक दूसरे की ओर देखने लगे,
माता पार्वती मुस्करा उठी और वृक्ष की डालियों की ओर इशारा किया, राम नाम सुनकर पेड़ की डालियां भी झूम रही थीं, उनके बीच से भी राम नाम उच्चारित हो रहा था,
शिव जी इस राम नाम की धुन में मस्त मगन होकर खुद भी राम राम कहकर नाचने लगे, माता पार्वती जी ने भी अपने पति का अनुसरण किया, भक्ति में भरकर उनके पांव भी थिरकने लगे,
शिव जी और पार्वती जी के नृत्य से ऐसी झनकार उठी कि स्वर्गलोक के देवतागण भी आकर्षित होकर बगीचे में आ गए और राम नाम की धुन में सभी मस्त हो गए,
माता जानकी भोजन तैयार करके प्रतीक्षारत थीं परंतु संध्या घिरने तक भी अतिथि नहीं पधारे तब अपने देवर लक्ष्मण जी को बगीचे में भेजा,
लक्ष्मण जी ने तो अवतार ही लिया था श्री राम की सेवा के लिए, अतः बगीचे में आकर जब उन्होंने धरती पर स्वर्ग का नजारा देखा तो खुद भी राम नाम की धुन में झूम उठे,
महल में माता जानकी परेशान हो रही थीं कि अभी तक भोजन ग्रहण करने कोई भी क्यों नहीं आया, उन्होंने श्री राम से कहा भोजन ठंडा हो रहा है चलिए हम ही जाकर बगीचे में से सभी को बुला लाएं,
जब सीता राम जी बगीचे में गए तो वहां राम नाम की धूम मची हुई थी, हुनमान जी गहरी नींद में सोए हुए थे और उनके खर्राटों से अभी तक राम नाम निकल रहा था,
श्री सिया राम भाव विह्वल हो उठे, श्री राम जी ने हनुमान जी को नींद से जगाया और प्रेम से उनकी तरफ निहारने लगे, प्रभु को आया देख हनुमान जी शीघ्रता से उठ खड़े हुए, नृत्य का माहौल भंग हो गया,
शिव जी खुले कंठ से हनुमान जी की राम भक्ति की सराहना करने लगे, हनुमान जी सकुचाए लेकिन मन ही मन खुश हो रहे थे,
श्री सीया राम जी ने भोजन करने का आग्रह भगवान शिव से किया,
श्री सीया राम जी ने भोजन करने का आग्रह भगवान शिव से किया,
सभी लोग महल में भोजन करने के लिए चल पड़े. माता जानकी भोजन परोसने लगीं, हुनमान जी को भी श्री राम जी ने पंक्ति में बैठने का आदेश दिया,
हनुमान जी बैठ तो गए परंतु आदत ऐसी थी की श्री राम के भोजन के उपरांत ही सभी भोजन करते थे,
आज श्री राम के आदेश से पहले भोजन करना पड़ रहा था, माता जानकी हनुमान जी को भोजन परोसती जा रही थी पर हनुमान का पेट ही नहीं भर रहा था, कुछ समय तक तो उन्हें भोजन परोसती रहीं फिर समझ गईं इस तरह से हनुमान जी का पेट नहीं भरने वाला,
उन्होंने तुलसी के एक पत्ते पर राम नाम लिखा और भोजन के साथ हनुमान जी को परोस दिया. तुलसी पत्र खाते ही हनुमान जी को संतुष्टि मिली और वह भोजन पूर्ण मानकर उठ खड़े हुए,
भगवान शिव शंकर ने प्रसन्न होकर हनुमान जी को आशीर्वाद दिया कि आप की राम भक्ति युगों-युगों तक याद की जाएगी और आप संकट मोचन कहलाएंगे
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