Sunday, 19 June 2016

भाव का महत्व है, क्रिया का नहीं।“

एक बार संत रामदासजी के पास एक शिष्य आया और उसने पूछा- “प्रभु! मैं कौन सी साधना करूं?”
रामदासजी ने उत्तर दिया- “कोई भी कार्य करने से पहले यदि तुम यह निश्चय करोगे कि वह भगवान के लिए किया जा रहा है तो तुम्हारे लिए यही साधना उत्तम होगी। तुम यदि तय कर लो कि तुम्हें दौड़ना है, तो दौड़ो, कितु दौड़ने से पहले यह निश्चय कर लो कि तुम भगवान के लिए दौड़ रहे हो, तब यही तुम्हारी साधना हो जाएगी।“
शिष्य ने पुनः पूछा- “गुरुवर! क्या बैठकर करने की कोई साधना नहीं है? क्या में जप के द्वारा साधना नहीं कर सकता हूं।“
तब संत बोले- “हां जप कर सकते हो, लेकिन ध्यान रखना ये तुम भगवान के लिए कर रहे हो। इसमें भाव का महत्व है, क्रिया का नहीं।“
शिष्य समझ नहीं पाया तब संत रामदास बोले- “क्रिया का भी महत्व है। क्रिया से भाव और भाव से ही तो क्रिया होती है। लेकिन ऐसे समय में तुम्हारी दृष्टि लक्ष्य की ओर होना चाहिए। फिर तुम जो भी करोगे वही साधना होगी। लक्ष्य के लिए क्रिया और भाव की आवश्यकता होगी। इनके योग का नाम साधना है और इन्ही से सिद्धि प्राप्त होती है। यदि लक्ष्य भगवान की ओर है। तो निश्चय ही ईश्वर तुम्हें जरूर मिलेंगे।“

"अपने हर कार्य को ईश्वर को समर्पित करके करने वाले का प्रत्येक कार्य ही पूजा माना जाएगा।
जब आप प्रत्येक कार्य ‘ईश्वर के लिए कर रहें हैं’ ऐसा सोच कर करेंगे तो स्वतः ही विकारों से बचने का प्रयास करेंगे, क्योंकि आपका कार्य ईश्वर के लिए है। इस तरह ईश्वर के लिए किया गया प्रत्येक कार्य स्वतः पवित्र आचरण से जुड कर पूजा हो जाएगा।

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