Wednesday, 15 June 2016

-----------= राबिया ने बताया प्रेम सार =---------------


अतीत में एक महान महिला संत हुई हैं, जिसका नाम था राबिया।
एक बार संत राबिया कोई धार्मिक पुस्तक पढ़ रही थीं। पुस्तक पढ़ते-पढ़ते
अचानक वे एक जगह पर रुक गईं। दरअसल उस किताब के एक पन्ने पर
लिखा था - ' शैतान से घृणा करो , प्रेम नहीं। "
राबिया ने कलम उठाई और उस पंक्ति को काट दिया कुछ बाद दिन
राबिया से मिलने एक संत उनके घर आए। जब उन्होंने उस पुस्तक को देखा
तो उसे उठाकर पढ़ने लगे। पुस्तक पढ़ते हुए वे उसी पन्ने पर पहुंचे, जहां
राबिया ने उक्त वाक्य को काटा था। यह देख उन्होंने सोचा कि किसी नासमझ
व्यक्ति ने ही इसे काटा होगा, जिसे धर्म का ज्ञान नहीं होगा। उन्होंने राबिया को
वह पंक्ति दिखाते हुए कहा - 'देखो, दुनिया में कितने नासमझ लोग हैं। जिसने -
भी यह पंक्ति काटी है, वह जरूर नास्तिक होगा। "
इस पर राबिया ने कहा - ' इसे तो मैंने ही काटा है। " यह सुनकर आगंतुक
संत आश्चर्यचकित रह गए। उन्होंने राबिया से कहा - ' तुमने तो धर्मशास्त्र -
पढ़े हैं। इतनी ज्ञानी होकर भी तुम यह कैसे कह सकती हो कि शैतान से
घृणा मत करो ? शैतान तो इन्शान का दुश्मन होता है। " इस पर संत राबिया
ने कहा - ' पहले मैं भी यही सोचती थी कि शैतान से घृणा करनी चाहिए।
लेकिन उस समय मैं प्रेम को समझ नहीं सकी थी। लेकिन जब से मैंने प्रेम को
समझा है, तब से मुझे घृणा लायक कोई नजर ही नहीं आता। "
इस पर संत ने कहा - ' क्या तुम यह कहना चाहती हो कि जो हमसे घृणा करते
हैं, हम उनसे प्रेम करें ? " राबिया ने उनके प्रश्न का जवाब देते हुए कहा - - -
' प्रेम किया नहीं जाता। प्रेम तो मन के भीतर अपने आप अंकुरित होने वाली
भावना है। प्रेम के अंकुरित होने पर मन के अंदर घृणा के लिए कोई जगह नहीं
होगी। हम सबकी एक ही तकलीफ है। हम सोचते हैं कि हमसे कोई प्रेम नहीं
करता। यह कोई नहीं सोचता कि प्रेम दूसरों से लेने की चीज नहीं है। यह देने
की चीज है। हम प्रेम देते हैं। यदि शैतान से प्रेम करोगे तो वह भी प्रेम का हाथ
बढ़ाएगा। "
यह सुनकर आगंतुक संत की शंका का समाधान हो गया।
वास्तव में यदि हमारे मन में सच्चे प्रेम की भावना हो, तो द्वेष,
ईर्ष्या या घृणा जैसे विकार उपज ही नहीं सकते।

No comments:

Post a Comment