Sunday, 19 June 2016

मोक्ष

एक बार बंदर पकडने वाले ने बंदरो के
लिए जाल
बिछाया। उसने एक छोटे मुहं का मटका
मुहं तक
मिट्टी में दबा दिया और उसमें थोडे से
चने डाल
दिए। कुछ चने आसपास बिखरा दिए। एक
बंदर
की नजर चनो पर
पडी। आसपास पडे चने खाने के बाद उसने
मटके में
देखा। चने पाने के लिए उसने तुरन्त मटके
में हाथ
डाला और मुट्ठी भर ली। पर मटके का मुहं
छोटा होने के कारण उसका हाथ फंस
गया। चने
बंदर से छूट नहीं रहे, हाथ बाहर निकल
नहीं
रहा। बंदर परेशान होकर चिल्लाने लगा
पर
मुट्ठी नहीं खोल रहा।
तभी वहां से गुजर रहे व्यक्ति को बंदर
पर दया
आ गई। उसने इतनी दूरी पर केला रख
दिया कि
बंदर का हाथ ना पहुंचे। केला देखते ही
बंदर उसे
पाने की कोशिश करने लगा। इस कोशिश
में
उसका ध्यान चने से हट गया और उसकी
मुट्ठी
खुल गई।
मुट्ठी खुलते ही उसका
हाथ बाहर निकल गया और बंदर केला
लेकर वहां
से भाग गया।
इसी तरह काल ने हमें इस संसार में
उलझाए रखने
के लिए सुख सुविधाओं रूपी चने बिखराए
हुए हैं।
सारा जीवन हम इन्ही के
पीछे दोडते रहते है और ये हाथ भी नहीं
आते।
सतगुरू को हम पर दया आई और उन्होने
हमारे
सामने मोक्ष रूपी केला रख दिया। इस
केले को
लेने के लिए हमारी सुख सुविधाओ रूपी चने
की
मुट्ठी स्वयं ही
ढीली हो
जाएगी। और हम मोक्ष प्राप्त कर सकते
हैं।

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