कुँवर भोजराज पहली बार बुआ गिरिजा के ससुराल आये थे ।भुवा के दुलार की सीमा न थी ।एक तो मेवाड़ के उत्तराधिकारी , दूसरे गिरिजा जी के लाडले भतीजे और तीसरे मेड़ते के भावी जमाई होने के कारण पल पल महल में सब उनकी आवभगत में जुटे थे ।
जयमल और भोजराज की सहज ही मैत्री हो गई ।दोनों ही इधरउधर घूमते -घामते फुलवारी में आ निकले ।सुन्दर श्याम कुन्ज मन्दिर को देखकर भोजराज के पाँव उसी ओर उठने लगे । मीठी रागिनी सुनकर उन्होंने उत्सुकता से जयमल की ओर देखा ।जयमल ने कहा ," मेरी बड़ी बहन मीरा है ।इनके रोम रोम में भक्ति बसी हुई है ।"
" जैसे आपके रोम रोम में वीरता बसी हुई है ।" भोजराज ने हँस कर कहा," भक्ति और वीरता , भाई बहन की ऐसी जोड़ी कहाँ मिलेगी ? विवाह कहाँ हुआ इनका ?"
" विवाह ? विवाह की क्या बात फरमाते है आप ? विवाह का तो नाम भी सुनते ही जीजी (दीदी) की आँखों से आँसुओं के झरने बहने लगते है ।हुआ यों कि किसी बारात को देखकर जीजी ने काकीसा से पूछा कि हाथी पर यह कौन बैठा है ? उन्होंने बतलाया कि नगर सेठ की लड़की का वर है ।यह सुनकर इन्होने जिद की कि मेरा वर बताओ ।काकीसा ने इन्हें चुप कराने के लिए कह दिया कि तेरा वर गिरधर गोपाल है ।बस, उसी समय से इन्होंने भगवान को अपना वर मान लिया है ।रात दिन बस भजन-पूजन , भोग- राग, नाचने -गाने में लगी रहती है ।जब यह गाने बैठती है तो अपने आप मुख से भजन निकलते जाते है ।बाबोसा के देहांत के पश्चात पुनः इनके विवाह की रनिवास में चर्चा होने लगी है ।इसलिए अलग रह श्याम कुन्ज में ही अधिक समय बिताती है ।" जयमल ने बाल स्वभाव से ही सहज ही सब बातें भोजराज को बताई ।
" यदि आज्ञा हो तो ठाकुर जी और राठौड़ों की इस विभूति का मैं भी दर्शन कर लूँ ?" भोजराज ने प्रभावित होकर सर्वथा अनहोनी सी बात कही ।
न चाहते हुये भी केवल उनका सम्मान रखने के लिए ही जयमल बोले ," हाँ हाँ अवश्य ।पधारो ।"
न चाहते हुये भी केवल उनका सम्मान रखने के लिए ही जयमल बोले ," हाँ हाँ अवश्य ।पधारो ।"
उन दोनों ने फुलवारी की बहती नाली में ही हाथ पाँव धोये और मन्दिर में प्रवेश किया ।सीढ़ियाँ चढ़ते हुये भोजराज ने उस करूणा के पद की अंतिम पंक्ति सुनी...........
मीरा के प्रभु गिरधर नागर भव में पकड़ो हाथ॥
मीरा के प्रभु गिरधर नागर भव में पकड़ो हाथ॥
वह भजन पूरा होते ही बेखबर मीरा ने अपने प्राणाधार को मनाते हुये दूसरा भजन आरम्भ कर दिया .....
गिरधर लाल प्रीत मति तोड़ो ।
गहरी नदिया नाव पुरानी अधबिच में काँई छोड़ो॥
गहरी नदिया नाव पुरानी अधबिच में काँई छोड़ो॥
थें ही म्हाँरा सेठ बोहरा ब्याज मूल काँई जोड़ो।
मीरा के प्रभु गिरधर नागर रस में विष काँई घोलो॥
मीरा के प्रभु गिरधर नागर रस में विष काँई घोलो॥
क्रमशः ...............
॥ श्री राधारमणाय समर्पणं ॥
॥ श्री राधारमणाय समर्पणं ॥
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