Tuesday 21 June 2016

ईश्वर की इच्छा

ईश्वर की इच्छा के बिना जब पत्ता नहीं हिलता तो फिर इंसान. ।
एक बार माँ आदि शक्ति जी प्रभु श्री शिव से ये कहने लगे की हे प्रभु सभी जानते हैं की आपकी इच्छा के बिना एक पत्ता तक भी नहीं हिल सकता है तो फिर मानव जो कर्म करता है और दुःख उठाता है क्या वह भी आपकी इच्छा से होता है तो प्रभु श्री शिव ने माँ की तरफ देख और मुस्कुराते हुए ये कहने लगे की हे जगत जननी हाँ ये सत्य है किन्तु मैंने इंसान को अगर जन्म भी दिया है तो उसे कर्म करने के लिए अपना अच्छा और बुरा सोचने के लिए बुद्धि भी प्रदान की है,अर्थात की मेरी इच्छा से पत्ता भी नहीं हिल सकता क्योँकि कुछ इस सृष्टि पे ऐसे जीव और प्राणी हैं जिन्हे बुद्धि जैसा अनमोल गहना मैंने नहीं दिया है उनके कर्मों के हिसाब से किन्तु अनमोल जीवन मानव का मैंने इस लिए बनाया है की इसे पाने की चाह रखने वाला प्रतेक प्राणी ये भली भांति सोचे की मुझे ये जो अनमोल जीवन प्रभु कृपा से प्राप्त हुआ है इसमें मैंने ऐसा कर्म करना है की जिससे मेरा ये जीवन और आने वाला अगला जीवन सफल हो सके,हे प्रिय जब कोई इंसान कोई बुरा कर्म करता है तो मैं उसे अवश्य उसका फल देता हूँ और जब कोई अच्छा कर्म करता है तो उसकी परीक्षा मैं ये सोचकर लेता हूँ की इसके मन के अंदर मेरे प्रति कितनी दृढ़ भक्ति अभी और बाकी है और जब इंसान मेरी परीक्षा से सफल होता है तो मैं उसे हर प्रकार के सुख प्रदान करता हूँ,किन्तु जो लोग दुखों के सागरों में घिरे रहते हैं वो अक्सर ये अवश्य कहते हैं की हे ईश्वर हमने ऐसा क्या कर्म किया है जो आप हमें ये दिन दिखा रहे हो तो हे प्रिय वह मानव ये इस लिए नहीं जान पाते क्योँकि मैंने इंसान को सब कुछ दिया है किन्तु ये शक्ति नहीं प्रदान की है की वो अपने पिछले कर्मों के बारे में जान सके अगर ऐसा करता तो कोई भी इंसान बुरा कर्म ना करता और जो जीव जो प्राणी अपने पिछले कर्मों के कारण 84 लाख जुनों में भटक रहे हैं उन्हें ये जीवन कैसे मिलता और वह कर्म कैसे करते इसलिए हे प्रिय मैंने इंसान को बुद्धि जैसा अनमोल गहना दिया है हाँ ये जरूर है की ग्रह दशा अक्सर इंसान को अँधा कर देती है और वह लग जाता है बुरे कर्म करने में किन्तु उस समय भी उसकी बुद्धि उसे इस बात का आभास करवाती रहती है की ये सही है वो गलत है किन्तु सब कुछ जानते हुए भी इंसान गलतियां करता रहता है और अंत में कहता है की जो करता है ईश्वर करता है मैं तो उसके हाथ का खिलौना हूँ,हे प्रिय जब मैंने इंसान को बनाकर उसे पृथ्वी पे उतारा है उसके बाद मेरे और उसके बीच में मैंने कर्म को बना दिया है की अगर वो कर्म करेगा तो सुख पायेगा और वही कर्म उसे बापिस मुझ तक लेकर आएंगे क्योँकि पृथ्वी पे मैंने इंसान को खुद का स्वामी स्वयं बनाया है जब तक उसके प्राण उसमे रहेंगे वह वही करेगा जो उसका मन चाहेगा किन्तु मृत्यु के पश्चात मैं उससे ये सवाल करता हूँ की अब बता की तू मुझसे दूर होकर क्या लेकर आया है मेरे पास तब उसके कर्मों को देखकर मैं उसे उसके कर्मों के अनुसार फल प्रदान करता हूँ,श्री शिव ने माँ से कहा की हे प्रिय जो कोई जैसा कर्म करेगा वह बैसा फल पायेगा किन्तु इतना जरूर है की मैं हमेशा इंसान को उसकी गलती का एहसास जरूर करवाता रहूँगा की ये गलत है वो सही है क्योँकि बुद्धि नाम का जो गहना मैंने उसे प्रदान किया है वह भी मैं स्वयं हु !!मैंने मानव को कर्म करने के लिए बहुत कुछ बनाया है जिससे वह अपना कर्म करेगा किन्तु ये उसे भली हांति याद रखना है की मैं हूँ क्या मुझे इस पृथ्वी पे क्योँ उतारा गया है क्या काम करवाना था ईश्वर को मुझसे जो मुझे ये अनमोल जीवन प्रदान किया 

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