Saturday, 18 June 2016

गणेश कैसे बने गजमुख


जब गणेश का जन्म हुआ तो पार्वती और शिव को शुभकामनायें देने सारे देवता आये। उनमें शनि भी थे। लेकिन शनि गणेश और पार्वती को देखना नहीं चाहते थे क्योंकि उनकी दृष्टि पड़ते ही अनिष्ट होता है। तब भवानी पार्वती ने शनि को बताया की संसार में जो कुछ भी होता है वो भगवान् कृष्ण की इच्छा से होता है। तब शनि ने पार्वती को न देख कर केवल गणेश को देखने का निश्चय किया।
जैसे ही शनि ने कनखियों से गणेश को देखा वैसे ही गणेश का शीश कट गया। गणेश का धड़ पार्वती की गोद में ही खुन से सना पड़ा रहा और उनका शीश गोलोक में जाकर भगवान् कृष्ण ने समाहित हो गया। #पार्वती भगवान् #विष्णु का ध्यान कर कर के विलाप करने लगीं।
पार्वती की पुकार सुनते ही भगवान् गरुण पर बैठकर एक वन में गए। एक गजराज जो अपनी पत्नी के साथ अपने शावकों के मध्य सो रहा था। भगवान् विष्णु ने अपने सुदर्शन से उसका शीश काट लिया और गरुण पर रख लिया। हाथी को मरा देख उसकी हथिनी और शावक चीत्कार कर कर के रोने लगे और भगवान् की स्तुति गाने लगे।
दयालु #भगवान् विष्णु ने उस हाथी को जीवित कर दिया और अपने कुटुंब के साथ एक कल्प तक जीवित रहने का वरदान दिया। फिर उस हाथी का शीश लाकर भगवान् ने गणेश के धड़ पर प्रत्यारोपित कर दिया और उन्हें दोबारा जीवित कर दिया।
इस तरह शनि की वक्र दृष्टि की वजह से पार्वती पर जो विषाद आया था उसका नाश भगवान् विष्णु ने किया।

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