Saturday, 18 June 2016

शास्त्रों में नहीं है मिलावट



इन दिनों हर कोई अँधा होकर प्रचार करता है की शास्त्रों में मिलावट है। श्लोको को बाद में मिलाया गया गया। हालात ये हैं की जो प्रसंग हमें समझ नहीं आता उसे मिलावट कह देते हैं। फिर क्या? जिसे जो समझ आये वो सही बाकी सब मिलावट? ऐसे ज्ञान प्राप्त होगा और ऐसे मोक्ष मिलेगा?

ऐसा सोचना की हमारे ग्रंथों में मिलावट है हमारे मन में ग्रंथों के प्रति शंका उत्पन्न करता है। शंका से ज्ञान नष्ट हो जाता है और बिना ज्ञान के मोक्ष कहाँ? असल में मनुस्मृति से लेकर पुराणों तक में कोई मिलावट नहीं है। बल्कि हमें जो श्लोक आपत्तिजनक और मिलावट लगते हैं वो भी मूल श्लोक ही हैं। असल में शास्त्रों में विद्या के साथ साथ अविद्या भी है। जो श्लोक अविद्या वाले हैं उनका खंडन भी उसी ग्रन्थ विशेष में मिल जाता है।

हर ग्रन्थ में विद्या और अविद्या का संतुलन है। क्योंकि वेदों में भी कहा गया है, "जो अविद्या को जानता है वो अन्धकार में प्रवेश करता है और जो विद्या को जानता है वो तो मानो घोर अन्धकार में चला जाता है, इसीलिए विद्या और अविद्या को साथ में जानना चाहिए ताकि विद्या से अविद्या का नाश करके मुक्त हुआ जा सके।" इसीलिए ग्रंथों में विवादास्पद बातें कही गयीं हैं। लेकिन हर अविद्या के लिए विद्या का भी विधान जरूर है। जहाँ अविद्या है वहां विद्या भी है।

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